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हरतालिका तीज एवं गणेश चतुर्थी की ढेरों बधाई और शुभकामनाएँ

जय हिंद साथियों 

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा।।

मैं वीरेन्द्र सिंह तोमर, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं प्रदेश अध्यक्ष करणी सेना छत्तीसगढ़ 

एवं संस्थापक खारुन गंगा महाआरती महादेव घाट रायपुर

साथियों भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेशोत्सव का उल्लास सम्पूर्ण देश भर में फैल जाता है जिसमें महाराष्ट्र में इसका आयोजन अद्वितीय होता है। गणपति बप्पा परिवार का सदस्य बनकर घर-घर पहुँचते हैं, सार्वजनिक झाँकियाँ लोगों के आकर्षण का केंद्र बनती हैं। मनमोहक स्वरूप और तरह-तरह की कलाकृतियों से अलंकृत होकर गणेश जी बच्चों को भी बहुत अधिक लुभाते और आकर्षित करते हैं। 

परन्तु क्या आप जानते हैं कि इस तरह के सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत कैसे हुई थी? कैसे भगवान् अपने मंदिर से निकल के भक्तों के बीच उनके साथी बनकर बाहर आए? क्यूँ इस तरह के आयोजनों की आवश्यकता पड़ी? अगर हाँ तो बहुत अच्छी बात है परंतु जिन्हें नहीं पता उनके लिए बता दूँ कि सर्वप्रथम 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी द्वारा सार्वजनिक गणेश पूजन का आयोजन किया गया था जिसका उद्देश्य था कि समाज के सभी वर्गों के लोग, सभी जाति धर्म के लोग साझा होकर एक मंच पर एक साथ आएँ और आपसी एकता का सूत्रपात हो। सभी परस्पर एक दूसरे से किसी बहाने से जुड़ें। 

जिस प्रकार हमने भी गत 02 वर्ष से प्रत्येक माह की पूर्णिमा की संध्या को खारुन गंगा महाआरती की शुरुआत की है जिसमें सभी जाति वर्ग के साथी अमीर गरीब, सक्षम असक्षम बंधु माताएँ बहनें एक साथ पूरी आस्था के साथ एकत्रित होते हैं। वैसे ही अंग्रेजी हुकूमत जब फूट डालो और राज करो की नीति अपनाकर देश को जाति मजहब ऊँचा नीच के भेद में बाँटकर हमपर शासन कर रही थी तब सभी समाजों को एकत्रित करने के उद्देश्य से लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी द्वारा गणेशोत्सव का शंखनाद किया गया जिससे सर्व समाज एकत्रित होकर एक दिशा में देश को स्वतंत्र कराने हेतु अपनी सम्मिलित भूमिका निभा सके। क्योंकि क्रांति तभी होती है जब सभी साथ आते हैं।

आज भी गणेशोत्सव धूम-धाम से देश भर के सभी शहरों में, हमारे रायपुर में भी लगभग सभी मोहल्लों में बड़े उल्लासमय ढंग से मनाया जाता है। पांडाल सजाने से लेकर प्रतिमा बैठकर झाँकी लगाने से लेकर 10 दिनों तक बड़े ही हर्षोल्लास के साथ गणेश जी को परिवार का सदस्य बनाकर यह पावन गणेश पूजन पर्व मनाया जाता है।

परंतु साथियों अब मुख्य बात जो मैं आप सभी से करना चाहता हूँ वह यह है कि वर्तमान में जो गणेशोत्सव का स्वरूप होता जा रहा है वह कहीं इस पर्व कि मूल भावना के विरुद्ध तो नहीं जा रहा? मुझे प्रसन्नता है कि हमारे युवा साथी बढ़ चढ़कर गणेशोत्सव के आयोजनों में हिस्सा लेते हैं। अपने धर्म और संस्कृति के प्रति ज़िम्मेदार हैं परंतु जैसा कि मैं पहले भी लाइव सेशनों में कहता आया हूँ कि युवा हमारे समाज की वह अपर शक्ति है जिसे सही दिशा दी जाए तो राष्ट्र का निर्माण कर सकती है परंतु भटक जाए तो उतनी ही विध्वंसकारी भी सिद्ध हो सकती है। 

गणेशोत्सव के सम्बंध में अगर हम इसके आरम्भ की तरफ देखें तो यह समाज के एकत्रीकरण के उद्देष्य से शुरू किया गया पुण्यकार्य था जो वर्तमान में प्रतिस्पर्धा के स्वरूप में विकसित होता जा रहा है जो कि गंभीर चिंता का विषय है। हमारे पास भी विभिन्न स्थानों से गणेश पांडाल हेतु चंदा एकत्रित करने युवा साथियों का आना होता है और हम प्रसन्नता से तन-मन-धन से उनका ऐसे धार्मिक और सामाजिक कार्यों में यादव सहयोग करने हेतु तत्पर भी हैं परंतु कई बार हमें ऐसी चीजें कचोटती हैं कि एक ही गली में एक दूसरे की प्रतिस्पर्धा में दो दो झाँकियाँ लगाना, अपनी झाँकी दूसरे से बेहतर साबित करने की होड़ में लगे रहना, गणेश पूजा में फिल्मी बेढंगे गाने बजाना यह सब न सिर्फ गणेश जी का ही अपमान करने के समान है बल्कि गणेशोत्सव की मूल चेतना के भी विरुद्ध है। जिस आयोजन का उद्देश्य सभी को साथ लाना, सभी में एकता बनाना है उसे प्रतिस्पर्धा का रूप दे देना हमारी सब से बड़ी भूल है। 

पाँच तत्व जब एक होते हैं तब वह भगवान् बनते हैं। भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु, अ से अग्नि और न से नीर इनका समग्र रूप ही भगवान् है जब हम गणेश जी की स्थापना करते हैं उसमें भी मिट्टी और जल से प्रतिमा निर्मित होती है, वायु से सूख कर उसमें स्थिरता आती है, अग्नि से यज्ञ और आरती के पश्चात् उसकी प्राणप्रतिष्ठा होती है और आकाश भर में उल्लास छा जाता है। अतः गणेशोत्सव कण कण को एक कर देने का, सभी प्रकार के भेदभाव, ऊँचा नीच की भावना को मिटा देने का पर्व है इसे एक साथ मिलकर उल्लास के साथ मनाइए। क्योंकि गणेश जी बुद्धि के देवता हैं और बुध्दिमान वही होता है जो हृदय से हृदय को जोड़े, समाज में एकता स्थापित करे और राष्ट्र की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करे, न कि अर्थहीन प्रतिस्पर्धा में पड़कर केवल अपनी नाक ऊँची करने की होड़ में स्वयं के साथ-साथ समाज की भी एकता का बंटाढार कर देश को पुनः पतन की खाई में धकेल दे। 

अतः इस गणेशोत्सव गणेश जी के साथ साथ अपने आस पास के बंधुओं से भी अपना हृदय एक करें और मिलकर देश, धर्म और समाज के हित की ओर अपना भरसक योगदान दें।

गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया

फिर मुलाक़ात होगी किसी और विषय के साथ -

जय सियाराम, जय हिंद जय छत्तीसगढ़